भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एलबम / त्रिपुरारि कुमार शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: कोई चिट्ठी नहीं मिली अब तक तुम्हारा फोन भी नहीं आया कैसे समझूँ कि…)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा
 +
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<Poem>
 
कोई चिट्ठी नहीं मिली अब तक
 
कोई चिट्ठी नहीं मिली अब तक
  
पंक्ति 68: पंक्ति 74:
  
 
मैं एलबम को बार-बार देखता हूँ ।
 
मैं एलबम को बार-बार देखता हूँ ।
 +
<Poem>

01:06, 25 मई 2011 का अवतरण

कोई चिट्ठी नहीं मिली अब तक

तुम्हारा फोन भी नहीं आया

कैसे समझूँ कि याद करते हो

वो अलग दौर था कुछ और ही ज़माना था

जब एक फोन भी नहीं था सारे घर में

आज हर हाथ में मोबाइल हुआ करता है

मैंने माना कि मेरा घर भी नहीं है लेकिन

मेरे पास जो कुछ है सब तुम्हारा है

रास्ता भूल कर तशरीफ अपने घर लाओ ।


कितने साल हो गये तुमको देखा ही नहीं

कितनी सदियाँ हुई तेरी आवाज़ सुनी थी

अब कभी तुमसे बात होगी तो

तेरी आवाज़ को तकसीम कर दूँगा मैं

अपने फाइल से चिपकाऊँगा छोटा टुकड़ा

और पहन लूँगा बड़ा टुकड़ा दोनों कानों में ।


तुम्हें पता ही नहीं दुनिया कितनी डेवलप है

अगर चाहो तो ‘ई-मेल’ भी कर सकते हो

बात हो सकती है ‘गूगल-टॉक’ के सहारे

मुझे लगता है बात करना ही नहीं चाहते हो

वरना इतनी भी फुर्सत नहीं मिलती होगी

कि डाल कर ‘एक का सिक्का’

पी सी ओ से फोन करो ।


तुम्हें पता ही नहीं शायद रिश्ता क्या है ?

और कैसे निभाये जाते हैं

‘ब्लॉग’ मेरा कभी पढ़ा तुमने ?

कि जिसमें ज़िक्र है तुम्हारा भी

मैंने लिखी है कई नज़्में तुम्हारी ख़ातिर

मैं तुमको याद बहुत करता हूँ ।


कैसे समझाऊँ कि मेरे लगते क्या हो ?

जब भी देखी तेरी तस्वीर अपनी एलबम में

लगा कि सामने रखी है मेरी रूह जैसे

और खुल गया है जिस्म दरीचे की तरह

मैं एलबम को बार-बार देखता हूँ ।