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"सोया हुआ शायर / त्रिपुरारि कुमार शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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एक बेनूर-से कमरे में सोया हुआ शायर (मैं) | एक बेनूर-से कमरे में सोया हुआ शायर (मैं) | ||
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सोचता है कि उसकी पलकों पर | सोचता है कि उसकी पलकों पर | ||
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मचल उठेगा तूफान कोई | मचल उठेगा तूफान कोई | ||
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जाने क्या देखकर पता ही नहीं | जाने क्या देखकर पता ही नहीं | ||
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जैसे उसकी कोई ख़ता ही नहीं | जैसे उसकी कोई ख़ता ही नहीं | ||
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एक करवट ने रूख़ को यूँ मोड़ा | एक करवट ने रूख़ को यूँ मोड़ा | ||
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नज़र जा लगी दरीचे से | नज़र जा लगी दरीचे से | ||
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किसी पैरहन ने चेहरे को ओढ़ लिया | किसी पैरहन ने चेहरे को ओढ़ लिया | ||
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ज़ायक़ा जिस्म का चिपक-सा गया | ज़ायक़ा जिस्म का चिपक-सा गया | ||
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बड़ी अजीब-सी एक घबराहट | बड़ी अजीब-सी एक घबराहट | ||
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ज़रा क़रीब-सी एक टकराहट | ज़रा क़रीब-सी एक टकराहट | ||
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रूह में घुल-सी गई | रूह में घुल-सी गई | ||
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कभी छान कर बारीक़ से लम्हे | कभी छान कर बारीक़ से लम्हे | ||
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कभी चुन कर पके हुए मौसम | कभी चुन कर पके हुए मौसम | ||
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जाने क्यों जमा करता है | जाने क्यों जमा करता है | ||
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एक बेनूर-से कमरे में सोया हुआ शायर | एक बेनूर-से कमरे में सोया हुआ शायर | ||
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01:21, 25 मई 2011 के समय का अवतरण
एक बेनूर-से कमरे में सोया हुआ शायर (मैं)
सोचता है कि उसकी पलकों पर
मचल उठेगा तूफान कोई
जाने क्या देखकर पता ही नहीं
जैसे उसकी कोई ख़ता ही नहीं
एक करवट ने रूख़ को यूँ मोड़ा
नज़र जा लगी दरीचे से
किसी पैरहन ने चेहरे को ओढ़ लिया
ज़ायक़ा जिस्म का चिपक-सा गया
बड़ी अजीब-सी एक घबराहट
ज़रा क़रीब-सी एक टकराहट
रूह में घुल-सी गई
कभी छान कर बारीक़ से लम्हे
कभी चुन कर पके हुए मौसम
जाने क्यों जमा करता है
एक बेनूर-से कमरे में सोया हुआ शायर