भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ज़रा सुनो तो / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 33: | पंक्ति 33: | ||
इसको करने पूरा | इसको करने पूरा | ||
− | + | काल द्वीप पर | |
नए-नए सुर-ताल हमें अब | नए-नए सुर-ताल हमें अब | ||
सूझ रहे हैं ! | सूझ रहे हैं ! | ||
</poem> | </poem> |
22:17, 25 मई 2011 के समय का अवतरण
ज़रा सुनो तो
घर-घर में अब गीत हमारे
गूँज रहे हैं !
यहाँ चिता पर हम लेटे
हैं धुआँ हो रहे
और देह के कष्ट हमारे
सभी खो रहे
पार मृत्यु के
हम जीवन की नई पहेली
बूझ रहे हैं !
मंत्र रचे थे
हमने धरती के सुहाग के
जो साँसों में दहती हर पल
उसी आग के
उन्हीं अनूठे
मंत्रों से सब नए सूर्य को
पूज रहे हैं !
अंतिम गीत हमारा यह
रह गया अधूरा
हाँ, कल लौटेंगे हम
इसको करने पूरा
काल द्वीप पर
नए-नए सुर-ताल हमें अब
सूझ रहे हैं !