भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"निक्का पैसा / रमेश तैलंग" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> निक्का पैसा कहा…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:10, 27 मई 2011 का अवतरण
निक्का पैसा कहाँ चला,
कहाँ चला जी, कहाँ चला ।
पहले रहा हथेली पर
फिर जा गुड़ की भेली पर
चिपक गया चिपकू बनकर
यहाँ चला न वहाँ चला ।
धूप लगी, गुड़ पिघल गया
निक्का पैसा निकल गया
कहाँ चलूँ की झंझट में
गिरा सेठ की गुल्लक में
यहाँ चला न वहाँ चला ।
किसी तरह मौक़ा पाकर
गुल्लक से निकला बाहर,
खुली सड़क थी इधर-उधर
लुढ़क चला सर-सर, सर-सर।
यहाँ चला फिर वहाँ चला
मौज उड़ाई, जहाँ चला ।