भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नाकाबाती छीं / बालकृष्ण गर्ग" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालकृष्ण गर्ग |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> सर्दी में थर-…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:37, 27 मई 2011 के समय का अवतरण
सर्दी में थर-थर,
गर्मी में लू-लू ।
तुम करते हा-हा,
हम करते हू-हू ।
मीठा-मीठा गप,
कड़वा-कड़वा थू ।
नाकाबाती छीं,
कानाबाती कू ।