भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इसलिए निकला हूँ / नील कमल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नील कमल |संग्रह=हाथ सुंदर लगते हैं / नील कमल }} {{KKCatKa…)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:15, 5 जून 2011 के समय का अवतरण

दरअसल
उम्मीद के सूरज का नहीं होता
कोई अस्ताचल

पूरब से निकलकर पश्चिम में
डूबती है हमारी सोच
हम पाते हैं एक रोज़
कि सोच कितनी ग़लत थी

दरअसल
सूरज न डूबता था कभी
न निकलता ही था कभी
डूबते निकलते थे हम ही
अपनी सोची हुई दुनिया से

हमारे बच्चे आज भी
स्कूलों में रटते हैं
पूरब-पश्चिम की झूठी
परिभाषाएँ

इसलिए निकला हूँ
कि दिखाऊँ उन्हें
उम्मीद का वह सूरज

बच्चे गढ़ें दिशाओं की
नई परिभाषाएँ
जो शब्दकोषों के बाहर
उनके इंतज़ार में हैं ।