भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आफू खाय भांग मसकावे / गोरखनाथ" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोरखनाथ |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> आफू खाय भांग मसकावे …)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:17, 5 जून 2011 के समय का अवतरण

आफू खाय भांग मसकावे
                    ता मैं अकलि कहाँ तै आवे ।
चढ़ताँ पित्त उतरताँ बाई,
                    ताते गोरख भाँगि न षाई ।।
 
मिंदर छाडे कुटी बँधावै,
                    त्यागे माया और मँगावै ।
सुन्दरि छाडे नकटी बासै
                    तातें गोरख अलगे न्यासै ।।