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"स्मृति / पुरुषोत्तम अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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नाचते मोर के पैरों की हरक़त
जिससे मनुष्य ने सीखा कत्थक
ताथेई...... ताताथेई...... ताथेई...... ता...
घनी हरियाली में छुपती
सिर्फ़ बेचैन आत्मा को दिखती...... कोयल की कूक
उस पल के नाज़ुक संतुलन में विफलता
सच को देख पाने, सह जाने और कह पाने में चूक
बाक़ी बस कलेजे के अनंत सूराख़
में बरबस उठती हूक ।