"प्रतीक्षा / ज्ञान प्रकाश चौबे" के अवतरणों में अंतर
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17:21, 21 जून 2011 के समय का अवतरण
दीवारों पर
बनाते हुए तुम्हारी परछाइयाँ
फ़र्श पर उगाई
कई हरी फ़सलें
बिस्तर पर लिखा करवटें
कोने में सुगबुगाते सपनों से कहा
शान्त रहो
प्रत्येक आहट पर
कमरे ने ओढ़ ली मुस्कराहट
बहुत दिनों बाद
क़िताबें छुट्टी पर गईं
सौ वॉट के टिमटिमाते बल्ब ने
अपना ज़र्द चेहरा छुपाते हुए
ग़ुम हो गया दुधिया रोशनी में
नींद ने भेजी मेरे पास
अवकाश की सूचना
और धड़कनें पूरे दिन
करती रहीं भागमभाग
गुड़हल के फूल हँसते रहे पूरे दिन
पलकों की आँखों से कुट्टी देखकर
दरवाज़े ने
हवा के कान में
फुसफुसाते हुए कुछ कहा
खिड़कियाँ मुस्कराईं
रोशनदान कुछ नाराज़ रहा इनसे
दूसरी तरफ़ चेहरा घुमाए
बतियाता रहा चिड़ियों के साथ
आख़िरकार
शाम उतरी आँगन में
रात भी पीछे से दरवाज़े से
चुपके पाँव आईें
उस रात कोई नहीं सोया
रात भी नहीं