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"शृंगार / आलोक धन्वा" के अवतरणों में अंतर

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15:17, 25 जून 2011 के समय का अवतरण

तुम भीगी रेत पर
इस तरह चलती हो
अपनी पिंडलियों से ऊपर
साड़ी उठाकर
जैसे पानी में चल रही हो !

क्या तुम जान-बूझ कर ऐसा
कर रही हो
क्या तुम शृंगार को
फिर से बसाना चाहती हो?