भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शब्द-सैनिकों से / रणजीत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> जाओ ! ओ मेरे शब्दों के म…)
(कोई अंतर नहीं)

03:06, 30 जून 2011 का अवतरण

जाओ !
ओ मेरे शब्दों के मुक्ति-सैनिको, जाओ !
जिन-जिन के मन का देश अभी तक है ग़ुलाम
जो एकछत्र सम्राट स्वार्थ के शासन में पिस रहे अभी हैं सुबह-शाम
घेरे हैं जिनको रूढ़ि-ग्रस्त चिन्तन की ऊँची दीवारें
जो बीते युग के संस्कारों की सरमायेदारी का शोषण
सहते हैं बेरोकथाम
उन सब तक नई रोशनी का पैग़ाम आज पहुँचाओ
जाकर उनको इस क्रूर-दमन की कारा से छुड़वाओ !
जाओ,
ओ मेरे शब्दों के मुक्ति-सैनिको, जाओ !