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"चलता है साथ-साथ कोई यों तो राह में / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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शबनम के भी निशान हैं फूलों की राह में | शबनम के भी निशान हैं फूलों की राह में | ||
01:03, 1 जुलाई 2011 का अवतरण
चलता है साथ-साथ कोई यों तो राह में
बेगानापन भी कुछ है मगर उस निगाह में
वह जानते हमीं हैं जो खाई है हमने चोट
एक बेरहम को अपना बनाने की चाह में
आयी न हो हमारी कहीं, रात, उनको याद
शबनम के भी निशान हैं फूलों की राह में
नश्तर चुभा के दिल के वे होते गए करीब
कहते गए हम 'और' 'और' 'आह' 'आह' में
दम भर भी बाग़ में न रहे चैन से गुलाब
काँटें बिछे थे प्यार के आँचल की छाँह में