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"बात जो कहने की थी, होठों पे लाकर रह गये / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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बात जो कहने की थी, होठों पे लाकर रह गये
 
बात जो कहने की थी, होठों पे लाकर रह गये
आपकी महफ़िल में हम खामोश अक्सर रह गये
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आपकी महफ़िल में हम ख़ामोश अक्सर रह गये
  
 
एक दिल राह में आया था छोटा-सा मुक़ाम
 
एक दिल राह में आया था छोटा-सा मुक़ाम
हम उसी को प्यार की मंजिल समझकर रह गये
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हम उसीको प्यार की मंज़िल समझकर रह गये
  
 
यों तो आने से रहे घर पर हमारे एक दिन
 
यों तो आने से रहे घर पर हमारे एक दिन

01:47, 1 जुलाई 2011 का अवतरण


बात जो कहने की थी, होठों पे लाकर रह गये
आपकी महफ़िल में हम ख़ामोश अक्सर रह गये

एक दिल राह में आया था छोटा-सा मुक़ाम
हम उसीको प्यार की मंज़िल समझकर रह गये

यों तो आने से रहे घर पर हमारे एक दिन
उम्र भर को वे हमारे दिल में आकर रह गये

क्यों किया वादा नहीं था लौट कर आना अगर!
इस गली के मोड़ पर हम ज़िन्दगी भर रह गये

रौंदकर पाँवों से कहते, 'खिल न पाते क्यों गुलाब!'
दंग हम तो आपकी इस सादगी पर रह गये