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"मिल गयी क्या तेरी आँखों में झलक प्यार की थी! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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दिल की पतवार तो खुद ही बिना पतवार की थी | दिल की पतवार तो खुद ही बिना पतवार की थी | ||
01:51, 1 जुलाई 2011 का अवतरण
मिल गयी क्या तेरी आँखों में झलक प्यार की थी!
आख़िरी वक्त तड़प और ही बीमार की थी
यों चलाई थी छुरी उसने गले पर हँसकर
हम ये समझे कि अदा यह भी कोई प्यार की थी
उसको गुमनाम ही रहने दो कोई नाम न दो
वह जो ख़ुशबू सी निगाहों में इंतज़ार की थी
दोष लहरों का नहीं था न किनारों का क़सूर
दिल की पतवार तो खुद ही बिना पतवार की थी
भेद तेरा उसे कोयल न कह गयी हो, गुलाब!
आज बदली हुई चितवन भी कुछ बहार की थी