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"हमें तो हुक्म हुआ सर झुका के आने का / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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ग़रज़ कि कुछ तो बहाना हो मुस्कुराने का | ग़रज़ कि कुछ तो बहाना हो मुस्कुराने का | ||
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है रंग और ही लेकिन तेरे दीवाने का | है रंग और ही लेकिन तेरे दीवाने का | ||
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02:35, 1 जुलाई 2011 का अवतरण
हमें तो हुक्म हुआ सर झुकाके आने का
नहीं ख़याल भी उनको नज़र उठाने का
ये किस बहार की मंज़िल पे रुक गए हैं क़दम
नज़र को आगे इशारा नहीं है आने का
निगाहें बढ़के लिपटती रहीं निगाहों से
चले तो वक्त नहीं था गले लगाने का
नहीं जो प्यार हो हमसे तो दोस्ती ही सही
ग़रज़ कि कुछ तो बहाना हो मुस्कुराने का
गुलाब यों तो हज़ारों ही खिल रहे हैं यहाँ
है रंग और ही लेकिन तेरे दीवाने का