भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अभिशप्त आग / रणजीत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत |संग्रह=प्रतिनिधि कविताएँ / रणजीत }} {{KKCatKavita…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:28, 1 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
कितने सुखी हैं वे -
सुखी और सन्तुष्ट
जो हर रोज़ अपने मालिकों के लिए मेहनत करते हैं
और उसे फ़र्ज़ कहते हैं,
और वे, जो हर साँझ किसी पत्थर या पोथी के सामने नाक रगड़ते हैं
और उसे धर्म कहते हैं,
और वे जो हर रात किसी औरत के साथ सोकर गुज़ारते हैं
और उसे प्यार कहते हैं,
और वे, जो हर बार अपनी सरकारों के लिए शस्त्र उठाते हैं
और उसे देशभक्ति कहते हैं ।
लेकिन मैं ?
उफ़ ! मेरे भीतर यह कौन सी अभिशप्त आग जल रही है ।