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"गंध बन कर हवा में बिखर जायँ हम, ओस बनकर पँखुरियों से झर जायँ हम / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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− | |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुलाब खंडेलवाल
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− | गंध बन कर हवा में बिखर जायँ हम, ओस बनकर पँखुरियों से झर जायँ हम
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− | तू न देखे हमें बाग़ में भी तो क्या! तेरा आँगन तो खुशबू से भर जायँ हम
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− | हमने छेड़ा जहाँ से तेरे साज़ को, कोई वैसे न अब इसको छू पायेगा
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− | तेरे होठों पे लहरा चुके रात भर, सोच क्या अब जियें चाहे मर जायँ हम!
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− | घुप अँधेरा है, सुनसान राहें है ये, कोई आहट कहीं से भी आती नहीं
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− | खाए ठोकर न हम-सा कोई फिर यहाँ, एक दीपक जला कर तो धर जायँ हम
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− | तेरे हर बोल पर हम तो मरते रहे, तुझको भायी न कोई तड़प प्यार की
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− | हमसे मोड़े ही मुँह तू रही, जिन्दगी! छोड़ भी जान अब अपने घर जायँ हम
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− | रात काँटों पे करवट बदलते कटी, हमको दुनिया ने पलभर न खिलने दिया
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− | आयेंगे कल नए रंग में फिर गुलाब, आज चरणों पे उनके बिखर जायँ हम
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00:52, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण