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"झलक रही हैं उन आँखों में शोखियाँ कैसी / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
 
|संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुलाब खंडेलवाल
 
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झलक रही हैं उन आँखों में शोख़ियाँ कैसी!
 
हमारे दिल में तड़पती है बिजलियाँ कैसी!
 
 
चिराग़ बुझ न गए हों कहीं मकानों के
 
हवामें तैरती आती हैं सिसकियाँ कैसी!
 
 
जहाँ से दोस्त कई मुँह फिराके लौट गए
 
ये बीच-बीच में आती हैं बस्तियाँ कैसी!
 
 
कोई तो छिप के सितारों से देखता है हमें
 
खुली हुई हैं अँधेरे में खिड़कियाँ कैसी!
 
 
भले ही बाग़ में उनके न खिल सके हैं गुलाब
 
मिली हैं पर ये निगाहों में शोख़ियाँ कैसी!
 
<poem>
 

00:55, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण