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"बेरुखी तो मेरे सरताज नहीं होती है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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बेरुखी तो मेरे सरताज नहीं होती है
 
पर वो पहले सी नज़र आज नहीं होती है
 
 
रूप मोहताज़ है बन्दों की नज़र का लेकिन
 
बंदगी रूप की मोहताज़ नहीं होती है
 
 
सर पे काँटें भी बड़े शौक से रखते हैं गुलाब
 
ताजपोशी तो बिना ताज नहीं होती है
 
 
 
<poem>
 

00:58, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण