भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नशा प्यार का आज टूटे तो टूटे / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंडे…) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
लकीरों पे दुनिया जो टूटे तो टूटे | लकीरों पे दुनिया जो टूटे तो टूटे | ||
− | भरा | + | भरा ग़म ही ग़म प्यार की बाँसुरी में |
− | कभी सुर | + | कभी सुर ख़ुशी का भी फूटे तो फूटे |
शराब आख़िरी घूँट तक पी चुके हम | शराब आख़िरी घूँट तक पी चुके हम |
02:05, 2 जुलाई 2011 का अवतरण
नशा प्यार का आज टूटे तो टूटे
ये खँडहर है, अब कोई लूटे तो लूटे
इसी राह से ज़िन्दगी जा चुकी है
लकीरों पे दुनिया जो टूटे तो टूटे
भरा ग़म ही ग़म प्यार की बाँसुरी में
कभी सुर ख़ुशी का भी फूटे तो फूटे
शराब आख़िरी घूँट तक पी चुके हम
ये प्याला जो हाथों से छूटे तो छूटे
गुलाब! आपके प्यार की बेल है यह
जँचे उनकी आँखों में बूटे, तो बूटे