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− | अनंतिम
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− | चित्रांकन-हेम ज्योतिका
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− | कुछ भी अंतिम नहीं
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− | कुछ भी नहीं अंतिम,
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− | शेष है एक घड़ी के बाद दूसरी घड़ी,
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− | उमंग के बाद ललछौंही उमंग,
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− | उल्लास के बाद रोमिल उल्लास,
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− | सैलाब के बाद भी एक बूंद,
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− | आबदार कहीं दुबका हुआ एक कतरा ख़ामोश
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− | बची है पत्तियों की नोंक के भी आगे सरसराहट,
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− | पक्षियों के डैनों से आगे भी उड़ान,
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− | पेंटिंग के बाहर भी रंगों का संसार,
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− | संगीत के सुरों के बाहर संगीत,
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− | शब्दों से पर निःशब्द का वितान
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− | ध्वनियों से पर मौन का अनहद नाद
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− | कोई भी ग्रह अंतिम नहीं आकाशगंगा में,
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− | कोई भी आकाशगंगा अंतिम नहीं ब्रह्मांड में,
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− | अचानक नमूदार होगा कहीं भी कोई ग्रह
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− | अंतरिक्ष में अचानक
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− | अचानक फूट पड़ेगा मरू में सोता
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− | अचानक भलभला उठेगा ज्वालामुखी में लावा
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− | अचानक कहीं होगा उल्कापात
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− | तत्वों की तालिका में बची रहेगी
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− | हमेशा जगह किसी न किसी
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− | नए तत्व के लिए
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− | शब्दकोश में नए शब्दों के लिए
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− | और कविताओं की दुनियाँ में नई कविता के लिए.
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− | पटाक्षेप
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− | अब लीलाओं के लिए
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− | ज़रूरी नहीं रहा मंच
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− | न ज़रूरी रहे
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− | नट-नटी और सूत्रधार.
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− | ज़रूरी नहीं रही मंच सज्जा
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− | कि अब समूची धरती है लीला का रंगमंच
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− | और तो और
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− | ज़रूरी नहीं रहा अंगराग,
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− | न पीतांबर, न मुकुट,
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− | अब वर्गीकृत नहीं रहीं भूमिकाएँ
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− | कि चाहिए एक अदद धीरोदात्त नायक,
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− | एक अदद रूपगर्विता मुग्धा नायिका,
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− | और एक अदद विदूषक सहचर.
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− | अब खल विदूषक है
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− | और विदूषक नायक
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− | और नायक क्लीव
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− | अब युग नहीं रहा सुखांत या दुखांत का
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− | कि लीला पुरुष की लीला
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− | कभी ख़त्म नहीं होती
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− | चलती रहती है लीला अहर्निश अविराम
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− | पटकथा से पूर्णतः विलोपित कर दिया गया है
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− | शब्द पटाक्षेप.
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− | विडंबना
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− | चित्रांकन-हेम ज्योतिका
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− | हाथी के दुश्मन हो गए हाथी दाँत,
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− | गंडे के दुल्हन उसी के सींग,
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− | हिरनों को बैरी हुआ उन्हीं का चर्म,
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− | शेरों-बाघों की शत्रु उन्हीं की खाल और अवयव.
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− | विषधर का शत्रु हुआ उसी का विष,
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− | समूर की ज़ान का गाहक हुआ उसी का लोम,
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− | इसी तरह
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− | प्रेमियों की जान ली प्रेम ने
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− | सुकरात को मारा सत्य ने,
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− | ईसा को प्रेम ने,
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− | और करूणा ने कृष्ण को
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− | गाँधी को मारा गोडसे ने नहीं,
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− | गाँधी के उदात्त ने.
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− | नदी का शत्रु हुआ उसका प्रवाह,
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− | पहाड़ को डसा ऊँचाई ने,
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− | और वनों की देह छलनी की काठ ने.
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− | इसी तरह
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− | इसी तरह
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− | आदमी के भीतर
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− | आदमी को मारा
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− | आदमी के गुमान ने?
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− | गौर से देखो
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− | अच्छे दिन इतने अच्चे नहीं होते
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− | कि हम उन्हें तमगे की तरह
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− | टाँक ले ज़िंदगी की कमीज़ पर
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− | बुरे दिन इतने बुरे भी नहीं होते
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− | कि हम उन्हें पोटली में बाँध
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− | पिछवाड़े गाड़ दें
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− | या
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− | फेंक दे किसी अंधे कूप में
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− | अच्छे दिन मसखरे नहीं होते
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− | कि हँसे तो हम हँसते चले जाएँ
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− | हँसे इस कदर कि पेट में
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− | बल पड़ जाए उम्र भर के लिए
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− | बुरे दिन इतने बुरे भी नहीं होते
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− | कि हम रोएँ तो रोते चले जाएँ
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− | और हिमनद बन जाए हमारी आँखें
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− | परस्पर गुंथे हुए आते हैं
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− | अच्छे दिन और बुरे दिन
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− | केकुले के बेंज़ीन के फार्मूले की तरह
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− | ग़ौर से देखो
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− | अच्छे और बुरे दिनों के चेहरे
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− | अच्छे दिनों की नीली आँखों की कोर में
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− | अटका हुआ है आँसू
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− | और बुरे दिनों के स्याह होंठों पर चिपकी है नन्हीं सी मुस्कान.
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