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बरसों बाद आज फिर
मैंने जोड़ लिया है अपने आपको
सिरफिरों की एक दूसरी जमात से
बरसों बाद आज फिर
मुझे अहसास हुआ है
जीवन की सार्थकता का ।
बरसों से छूटा था
सिरफिरों से मेरा सम्पर्क
क्योंकि उनकी एक जमात से मेरा स्वप्नभंग हो गया था
नहीं, उनमें से अधिकांश की ईमानदारी पर
नहीं हुआ था मुझे संदेह
असल में हुआ यह
कि उनकी आदर्श-निष्ठा को अपने स्वार्थ में इस्तेमाल करने वाले
उनके धूर्त नेताओं को पहचान लिया था मैंने
और देख लिया था
वैचारिक और आर्थिक पराश्रितता की
उन अदृश्य डोरियों को
जिनमें बँधे उनके नेता
हिन्दूकुश के पार अपने महल में विराजमान
एक चक्रवर्ती की चाकरी बजा रहे थे ।
क्योंकि वे समझ नहीं रहे थे अपने दुरुपयोग को
मैं छिटक गया था उनसे ।
आज मैंने फिर
सिरफिरों की एक नयी जमात से अपने को जोड़ लिया है
क्योंकि मैं जानता हूँ
अपने मन की गहराइयों में कि
सिर-सीधे कर सकते हैं सिर्फ़
खेती, मज़दूरी, दस्तकारी
नौकरी, व्यापार और शादी
सिरफिरों का साथ
बना सकते हैं सिर्फ़
योजनाएँ, मकान, बच्चे
सिरफिरे ही कर सकते हैं कोई नई खोज
नया अविष्कार
नई रचना
नई क्रान्ति
रच सकते हैं कोई नई कलाकृति
नया इतिहास
नया मनुष्य ।
एक सिरफिरा
छत्तीसगढ़ के जंगलों में सुलगा रहा है इन्सानियत की आग
दूसरा
हरियाणा के शक्ति-सामंतों से मुक्त करवा रहा है
अग्निवेश धारण कर
बरसों से बंधुवा बनाए गए दूर-दूर के मज़दूरों को
तीसरा इन्सानियत के चेहरे से पौंछ रहा है कोढ़ के निशान
एक युग से चुपचाप आनन्दवन में
कुछ सिरफिरे लड़के और लड़कियाँ
बोधगया के महन्त के चंगुल से छुड़ाने की कोशिश में
भूमिहीनों की ज़मीनें
कचहरियों के चक्कर लगा रहे हैं
और थानों में पीटे जा रहे हैं
मैं उनके साथ मार खाना चाहता हूँ
और चिपक जाना चाहता हूँ
उत्तराखंड की हरियाली को
सरकारी ठेकेदारों की कुल्हाड़ी से बचाने की कोशिश में
पेड़ों से चिपक जाने वाले लोगों के साथ !