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"बन के दीवाना न यों महफ़िल में आना चाहिए / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
 
|संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
 
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<poem>
 
  
बनके दीवाना न यों महफ़िल में आना चाहिए
 
कुछ तो लेकिन उनसे मिलने का बहाना चाहिए
 
 
कोई पहचाना हुआ चेहरा नहीं है भीड़ में
 
अब हमें भी अपने घर को लौट जाना चाहिए
 
 
दर्द पहले दर्द है फिर और चाहे कुछ भी हो
 
दर्द को ऐसे नहीं हँसकर उडाना चाहिए
 
 
दो न मंज़िल का पता हमको, मगर यह तो कहो
 
क्या न तुमको पास आकर मुस्कुराना चाहिए!
 
 
रंग लाया है तेरा ग़ज़लों में बँध जाना, गुलाब!
 
कह रहे हैं वे, इसे होँठों पे लाना चाहिए
 
<poem>
 

00:57, 9 जुलाई 2011 के समय का अवतरण