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"यों तो इस दिल के क़दरदान बहुत कम हैं आज / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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उनके होंठों पे छिड़े और ही सरगम हैं आज
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01:16, 9 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


यों तो इस दिल के क़दरदान बहुत कम हैं आज
फिर भी लगता है कि आँखें ये तेरी नम हैं आज

दो घड़ी मुँह से लगाकर किसीने फ़ेंक दिया
एक टूटे हुए प्याले की तरह हम हैं आज

चूक कुछ तो थी हुई राह की पहचान में ही
दूर हम प्यार की मंज़िल से हर क़दम हैं आज

उनसे मिलकर भी तड़पते हैं उनसे मिलने को
पास जितने भी ज़ियादा हैं उतने कम हैं आज

और ही उनकी निगाहों में खिल रहे हैं गुलाब
उनके होँठों पे छिड़े और ही सरगम हैं आज