भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नींद कैसे हो / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार रवींद्र |संग्रह=आहत हैं वन / कुमार रवींद्…)
 
(कोई अंतर नहीं)

09:45, 11 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

घंटियाँ बजतीं अँधेरे आयनों के पार
                            नींद कैसे हो
 
है निरुत्तर रात यह
आहट अकेली है
साँस ने
घुटती हुई आवाज़ झेली है
 
खाँसते हैं डरे-उड़के द्वार
                   नींद कैसे हो
 
आँख में है बीज सूरज के
वही पिछले दिन
खोलना लेकिन अँधेरे का
है नहीं मुमकिन
 
धूप का बासी बचा संसार
                  नींद कैसे हो
 
बोलना है लाज़िमी
वैसे सबेरे का
कंठ में सोए
हवा के मूक डेरे का
 
साँस पर है अस्थियों का भार
                  नींद कैसे हो