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"क्रूर महलों के ढाँचे / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

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10:17, 11 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

ऊँची मीनारें हैं
लंबे परकोटे
इस बढ़ती बस्ती में सबके घर टोटे
 
कैसे हम
सूरज को
इस जगह पुकारें
डूबती हवाएँ हैं
घिरती दीवारें
 
गुंबज हो रहे बड़े - आसमान छोटे
 
होते हैं क्रूर बड़े
महलों के ढाँचे
कहाँ-कहाँ साँस घिरी
कौन यहाँ बाँचे
 
फुरसत है किसे - सभी जमा रहे गोटें
 
अँधे गलियारे हैं
गहरे तहख़ाने
नकली हो गईं यहाँ
सबकी पहचानें
 
चेहरे हैं भद्र और अंदर से खोटे