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"नंगे घुटनों से ढँका / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
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कोई ज़माने में
चलत होइ टका
अपना तो बाबू रुपय्यौ थका
टका सेर भाजी
टका सेर खाजा
कहते -
उस नगरी का
चौपट था राजा
कैसा अँधेर
वही न्याव अपनी इस बस्ती में पका
अठन्नी की गाजर
अठन्नी की मूली
बाकी बस बूम बची है
खाली-खूली
देर या सबेर
भूखे पेट रहने का सुख सबने छका
नल राजा छोड़ गए
दमयन्ती रोती
कलियुग ने छीनी है
हम सबकी धोती
दिन का है फेर
सूरज का चेहरा नंगे घुटनों से ढँका