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"थक कर सोयी थी भारत-भू / द्वादश सर्ग / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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− | |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
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− | |संग्रह=आलोकवृत्त / गुलाब खंडेलवाल
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− | [[Category:कविता]]
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− | थक कर सोयी थी भारत-भू
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− | कारा में जगते थे बापू
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− | 'बा' की समाधि दिख जाती थी
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− | मन में हलचल-सी छाती थी
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− | 'क्या उसने जीवन में पाया!
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− | तिल-तिल कर क्षार हुई काया
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− | होगा स्वतन्त्र भारत लेकिन
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− | बा देख न पायेगी वह दिन
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− | मेरी सेवा में ही लय थी
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− | वह मुझसे अधिक राममय थी
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− | दे मुझे महात्मा-पद भास्वर
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− | वह बनी नींव की ज्यों पत्थर
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− | मुँह से कुछ भी न कहा उसने
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− | सब कुछ चुपचाप सहा उसने
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− | रहकर जीवन भर उदासीन
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− | हो गयी सहज ही ब्रह्मलीन'
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− | भर आये बापू के लोचन
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− | हो गये अचल भी चंचल-मन
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− | सोया दुःख जाग गया जैसे
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− | थी खड़ी कह रही 'बा' जैसे--
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− | कैसे बीतेगा कठिन काल!
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− | अब कौन करेगा देखभाल !
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− | थे आप भले ही मुक्त नाथ!
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− | सेवा को तो मैं रही साथ
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− | जो सबकी विपदा टालेगा
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− | अब उसको कौन सँभालेगा!
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− | हर जगह आपकी जय होगी
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− | पर कौन बनेगा सह्भोगी!
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− | सबको तो देते रहे तोष
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− | बापू 'बा' का भी रहा होश!'
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− | 'बा' रो-रोकर ज्यों कहती थी
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− | दृग से जलधारा बहती थी
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− | आये बापू को याद तभी
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− | वे एक-एककर दृश्य सभी
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− | लघुवयस, शोखियों भरी, चपल,
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− | जब प्रिया प्राण करती चंचल
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− | वे भूलें जीवन की अपनी
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− | जब थी उससे तकरार ठनी
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− | 'कर साठ बरस का नेह चूर
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− | वह निठुर निमिष में गयी दूर'
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− | जागीं ज्यों-ज्यों स्मृतियाँ कठोर
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− | मन की अधीरता बढ़ी और
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− | जा रही प्रिया थी पुण्यधाम
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− | बापू करते थे राम-राम
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− | <poem>
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02:25, 14 जुलाई 2011 के समय का अवतरण