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"दरसनाए पैग़म्बरे ख़ुदा / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

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13:41, 14 जुलाई 2011 का अवतरण

सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम<ref>हज़रत मुहम्मद साहब (अल्लाह का दुरुद और सलाम आप पर हो) के यशोगान में ।</ref>

तेरा दोस्त है वह जो ख़ेरुलवरा ।
मुहम्मद नबी मालिके दोसरा ।
कहाँ वस्फ़<ref>प्रशंसा, विशेषता</ref> हो मुझ से उसका अदा ।
व लेकिन है मेरी यही इल्तिजा<ref>प्रार्थना</ref> ।

             ज़बाँ ताबुवद दर दहाँ जाए गीर ।
             सनाऐ मुहम्मद बुवद दिल पज़ीर<ref>जब तक जुबाँ मुँह में क़ायम रहे, रसूले पाक स्व० अ० व० की तारीफ़ और तौसीफ़ दिल को भाती रहे</ref> ।

वह शाहे दो आलम अमीरे उमम ।
बने वास्ते जिसके लौहो-क़लम<ref>वह तख़्ती और लेखनी, जिनके द्वारा ईश्वर की आज्ञा से भविष्य में होने वाली सब घटनाएँ लिखी हों</ref> ।
सदा जिसके चूमें मलायक<ref>देवतागण, फ़रिश्ते</ref> क़दम ।
करूँ उसका रुतबा<ref>महत्ता, बड़ाई</ref> मैं क्यूँकर रक़म<ref>लिखना</ref> ।

             हबीबे ख़ुदा अशरफ़ुल अंम्बिया ।
             कि अर्शे मजीदश बुवद मुत्तक़ा<ref>वह रसूल जो ख़ुदा के महबूब हैं और नाबियों में जिनका रुत्बा सबसे ज़्यादा है । (मैराज की रात को) जिनका निवासस्थान अर्श (सब आसमानों के ऊपर का स्थान) जैसी ऊँची जगह पर बना।</ref> ।

अगर्चे यह पदा हुआ ख़ाक पर ।
गया ख़ाक से फिर वह इफ़लाक<ref>आकाश</ref> पर ।
मेरा जी फ़िदा उस तने पाक पर
तसद्दुक़<ref>न्यौछावर</ref> हूँ मैं उसके फ़ितराक<ref>वह डोरी जो घोड़े की ज़ीन में दोनों ओर लगाते हैं।</ref> पर ।

             सवारे जहाँ गीर यकराँ बुराक़ ।
             कि बगज़श्त अज़ करने नीली-ए-खाक़ ।<ref>वह व्यक्ति जो अकेले बुराक़ घोड़े पर सवार होकर सारे ब्रह्माण्ड की सैर कर आए जो कि इस नीले गुम्बद वाले महल (आसमान) से भी परे चले गए</ref>

शब्दार्थ
<references/>