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"उन मूक प्राणों की कथा / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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उन मूक प्राणों की कथा
  
 
जो खिल अँधेरी रात में   
 
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मुरझा गए बस प्रात में  
 
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यह भी नहीं पाए समझ, सौन्दर्य क्या, संसार क्या
 
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जो प्रेम करने को चले
 
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प्रिय-स्पर्श पाकर ही जले  
 
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यह भी न अनुभव कर सके, है प्रीति क्या, है प्यार क्या
 
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जो व्योम से आये उतर  
 
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करने मलिन जग को मुखर
 
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पथ बीच ही खोये मगर  
 
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यह भी न पाए जान, जग की रीति क्या, व्यवहार क्या
 
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02:13, 17 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


उन मूक प्राणों की कथा

जो खिल अँधेरी रात में
मुरझा गए बस प्रात में
यह भी नहीं पाए समझ, सौन्दर्य क्या, संसार क्या

जो प्रेम करने को चले
प्रिय-स्पर्श पाकर ही जले
यह भी न अनुभव कर सके, है प्रीति क्या, है प्यार क्या

जो व्योम से आये उतर
करने मलिन जग को मुखर
पथ बीच ही खोये मगर
यह भी न पाए जान, जग की रीति क्या, व्यवहार क्या

उन मूक प्राणों की कथा