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"उस दिन बोधि-वृक्ष के नीचे एक अबोध हृदय आया,, / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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उस दिन बोधि-वृक्ष के नीचे एक अबोध हृदय आया,
 
जीवन के दुःखों से विस्मित, कातर, थकित, अधीर, उदास,
 
'शान्ति कहाँ!' बोला वह तरु के पत्र-पत्र ने दुहराया,
 
'शान्ति कहाँ!' बोली धरती, सागर, समीर, बोला आकाश.
 
 
 
देवों ने आपस में पूछा, लगे ढूँढने विकल सभी,
 
मद से भरे प्रिया-नयनों में, मनुज देव-गृह में जाकर
 
विकल पुकार उठ शिशुओं से, महाकाल हँस पडा तभी  
 
'मुझमें शान्ति भरी है, वसुधा के प्राणी! देखो आकर.'
 
 
 
बोला वह अविचल स्वर में, 'है शान्ति नहीं अमरत्व-रहित
 
मधुर  उर्वशी के अधरों में, नहीं मृत्यु में शान्ति कभी,
 
वह प्रत्यावर्तन, परिवर्तन, नहीं मनुज का होगा हित 
 
मृग-तृष्णा की भाग-दौड़ से;  नश्वर हैं ये आप सभी.
 
 
 
शान्ति धर्म में ही है, धर्म अहिंसा में, भव-कारागार
 
सत्य अहिंसा ही है मानव तेरी महामुक्ति के द्वार'
 
<poem>
 

02:53, 17 जुलाई 2011 के समय का अवतरण