भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इंतज़ार-१ / सत्यानन्द निरुपम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सत्यानन्द निरुपम |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}‎ <poem> तुम्हारी …)
(कोई अंतर नहीं)

12:16, 19 जुलाई 2011 का अवतरण

तुम्हारी आमद तय थी
थाप सीढ़ियों पर पड़ी
किसी के पैरों की
कानों ने कहा-
यह तुम नहीं हो
और तुम नहीं थी
सोचता हूँ
कानों का तुम्हारे पैर की थापों से
जो परिचय है, वह क्या है...

कुछ अनाम भी रहे जिंदगी में
तो जिंदगी सफ़ेद हलके फूलों की
भीनी-भीनी खुशबू-सी बनी रहती है
यह ख्याल आते ही
सोचना छोड़, देखने लगता हूँ
तुम्हारी राह...
खुशबू के कल्ले-दर-कल्ले फूटते हैं
कमरे के कोने में!