भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बीते बसंत की कविता / सत्यानन्द निरुपम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सत्यानन्द निरुपम |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> बसंत के गी…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:24, 19 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
बसंत के गीत वो गाएं
जिनके कंधे पर
पसरी हो
सुगंध की बेल
...मैं तक रहा हूँ राह
फसल के सकुशल
घर आने की
मैं दो कोमल खुली बाँहों की पुकार नहीं सुन पाता
मेरे आसरे जीता है पूरा एक कुनबा
सच कहता हूँ
मैंने बसंत की अगवानी में
बोया ही नहीं गेंदे का फूल