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गरीबी / सुरेश यादव
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15:48, 19 जुलाई 2011
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आग जिनके पेट
गरीबी
बाज़ार
में
होती
मुंह बांध कर जाती हुई मिलती
है
ख़ाली जेब मिलती है मेले में
गुब्बारे के साथ
फूलती और फूटती है
समय के झूलों में
गरीबी - पेंडुलम सी झूलती है !
</poem>
डा० जगदीश व्योम
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