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"इस बस्ती के लोग / सुरेश यादव" के अवतरणों में अंतर
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+ | चूल्हे - इन्हीं के होते हैं | ||
+ | जिनमें उगती है घास | ||
+ | सहलाते हैं हरापन इसका | ||
+ | थकती नहीं नज़रें इनकी | ||
+ | जाने किस नस्ल के रोमानी हैं | ||
+ | इस बस्ती के लोग. | ||
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21:40, 19 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
भरी बरसात में
बेच डाले हैं अपने छोटे-छोटे घर
खरीद लाये हैं एक बड़ा-सा आकाश
इस बस्ती के लोग
बैठे हैं जिन डालों पर
काटते उन्हीं को दिन-रात
कालिदास होने का भ्रम पाले हुए हैं
इस बस्ती के लोग
अक्सर इनकी चीखों का
इनके दर्दों से कोई रिश्ता नहीं होता
किसी और के जुकाम पर बेहाल होते हैं
इस बस्ती के लोग
चूल्हे - इन्हीं के होते हैं
जिनमें उगती है घास
सहलाते हैं हरापन इसका
थकती नहीं नज़रें इनकी
जाने किस नस्ल के रोमानी हैं
इस बस्ती के लोग.