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"वांछित जो माँगें आप, सौंवे बलिकाल में / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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                 धेनु, ग्राम, शस्य भूमि
 
                 धेनु, ग्राम, शस्य भूमि
 
गज, अश्व, दास, मणि, मानिक, कुबेर-से
 
गज, अश्व, दास, मणि, मानिक, कुबेर-से
भवन सुवर्ण के उन्हीं को, देव! दीजिये  
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भवन सुवर्ण के उन्हींको, देव! दीजिये  
 
दौड़े फिरते जो मृगतृष्णा  में विभव की
 
दौड़े फिरते जो मृगतृष्णा  में विभव की
 
पागल से बनकर, समर्थ ब्रह्मणत्व-अर्थ
 
पागल से बनकर, समर्थ ब्रह्मणत्व-अर्थ
 
अर्थ अर्थहीन है अनर्थ मूल सर्वदा.
 
अर्थ अर्थहीन है अनर्थ मूल सर्वदा.
 
तीन पग भूमि है अलम् जीवधारियों को  
 
तीन पग भूमि है अलम् जीवधारियों को  
राज्य लिप्सु को तो तीन लोक भी न पूरे हैं.
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राज्य-लिप्सु को तो तीन लोक भी न पूरे हैं.
 
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02:51, 21 जुलाई 2011 का अवतरण


बलि –
वांछित जो माँगें आप, सौंवे बलिकाल में
 नहीं है अदेय आज मेरे लिये प्राण भी
कर के कुसुमवत्  
वामन-- 
                 धेनु, ग्राम, शस्य भूमि
गज, अश्व, दास, मणि, मानिक, कुबेर-से
भवन सुवर्ण के उन्हींको, देव! दीजिये
दौड़े फिरते जो मृगतृष्णा  में विभव की
पागल से बनकर, समर्थ ब्रह्मणत्व-अर्थ
अर्थ अर्थहीन है अनर्थ मूल सर्वदा.
तीन पग भूमि है अलम् जीवधारियों को
राज्य-लिप्सु को तो तीन लोक भी न पूरे हैं.