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फिरे, सब फिरे / गुलाब खंडेलवाल
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21:07, 21 जुलाई 2011
नीचे महासिंधु, नभ ऊपर अपार है
कोई संग-साथ न तो प्रिय-परिवार है
झंझा की
ही
नाव, ज्वार की ही पतवार है
कभी उठ गए, कभी गिरे
Vibhajhalani
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