भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कितने बंधु गये उस पार! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 16: पंक्ति 16:
 
 
 
 
 
विरह अनंत, मिलन दो दिन का  
 
विरह अनंत, मिलन दो दिन का  
शोक यहाँ करिए किन-किन का!
+
शोक यहाँ करिये किन-किन का!
 
उड़-उड़ जाता कर का तिनका  
 
उड़-उड़ जाता कर का तिनका  
 
आँधी से हर बार
 
आँधी से हर बार

03:55, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


कितने बंधु गये उस पार!
और किनारे पर हैं कितने जाने को तैयार
 
नौका पर चढ़ जाते हैं जो
मुड़कर भी न देखते तट को
कोई कितना भी कातर हो
करता रहे पुकार
 
विरह अनंत, मिलन दो दिन का
शोक यहाँ करिये किन-किन का!
उड़-उड़ जाता कर का तिनका
आँधी से हर बार

कितने बंधु गये उस पार!
और किनारे पर हैं कितने जाने को तैयार