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"सात हाइकु / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर
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19:03, 10 अगस्त 2011 का अवतरण
क्यों तू उदास
दूब अभी है ज़िंदा
पिक कूकेगा।
लोक रोपता
महाकाव्य की पौध
लुनता कवि।
बादल रोया
धरती भी उमगी
फसल उगी।
स्वागत हुआ
दूब-धान है आया
लोक जीवन।
मरने न दो
परंपराएँ कभी
बचोगे तभी।
नदी बनाता
सोख हवा से नमीं
वृद्ध पहाड़।
छीन लेता है
धनी मेघों से जल
दानी पहाड़