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"काग़ज़ का टुकड़ा / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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उठता-गिरता-मुड़ता जाए
 
उठता-गिरता-मुड़ता जाए
इक काग़ज़ का टुकड़ा
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काग़ज़ का टुकड़ा
  
 
कभी पेट की चोटों को
 
कभी पेट की चोटों को
भर आँखों में लाता
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आँखों में भर लाता
बाहर आ कभी होठ से
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और अकेले में मन ही मन
मन की पीड़ा गाता
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टीसों को गाता  
  
 
अंदर-अंदर कुढ़ता जाए
 
अंदर-अंदर कुढ़ता जाए
इक काग़ज़ का टुकड़ा
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काग़ज़ का टुकड़ा
  
 
कभी फ़सादों में उलझा
 
कभी फ़सादों में उलझा
तकली बनकर नाचे
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तकली बनकर नचा
टूटे-फूटे शीशों में
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टूटे-फूटे शीशे में  
अपने चेहरे बाँचे
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अपना चेहरा बांचा
  
 
घटनाओं से जुड़ता जाए
 
घटनाओं से जुड़ता जाए
इक काग़ज़ का टुकड़ा
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काग़ज़ का टुकड़ा
  
 
कभी कोयले-सा जलता
 
कभी कोयले-सा जलता
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हल चलने पर गुड़ता जाए
 
हल चलने पर गुड़ता जाए
इक काग़ज़ का टुकड़ा
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काग़ज़ का टुकड़ा
 
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01:13, 12 अगस्त 2011 का अवतरण

उठता-गिरता-मुड़ता जाए
काग़ज़ का टुकड़ा

कभी पेट की चोटों को
आँखों में भर लाता
और अकेले में मन ही मन
टीसों को गाता

अंदर-अंदर कुढ़ता जाए
काग़ज़ का टुकड़ा

कभी फ़सादों में उलझा
तकली बनकर नचा
टूटे-फूटे शीशे में
अपना चेहरा बांचा

घटनाओं से जुड़ता जाए
काग़ज़ का टुकड़ा

कभी कोयले-सा जलता
राख बना तो रोया
माटी में मिल जाने पर
सदा-सदा को सोया

हल चलने पर गुड़ता जाए
काग़ज़ का टुकड़ा