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"कि तुम मुझे मिलीं / रामानन्द दोषी" के अवतरणों में अंतर
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कि साँस में सुहासिनी | कि साँस में सुहासिनी | ||
सिहर-सिमट समा रही | सिहर-सिमट समा रही | ||
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कि साँस का सुहाग | कि साँस का सुहाग | ||
माँग में निखर उभर उठा | माँग में निखर उभर उठा |
15:26, 13 अगस्त 2011 का अवतरण
कि तुम मुझे मिलीं
मिला विहान को नया सृजन
कि दीप को प्रकाश-रेख
चाँद को नई किरन ।
कि स्वप्न-सेज साँवरी
सरस सलज सजा रही
कि साँस में सुहासिनी
सिहर-सिमट समा रही
कि साँस का सुहाग
माँग में निखर उभर उठा
कि गंध-युक्त केश में
बाधा पवन सिहर उठा
कि प्यार-पीर में विभौर
बन चली कली सुमन
कि तुम मुझे मिलीं
मिला विहान को नया सृजन ।