"लड़की और रेल / स्वप्निल श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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22:40, 9 अगस्त 2007 का अवतरण
रोज़ तड़के उठकर अंगीठी
सुलगाती है लड़की
और रेल से उतरते हुए यात्रियों को
उत्सुकता से देखती है
रेल लम्बी सीटी के साथ
स्टेशन पर रुकती है
लड़की को अच्छी लगती है
रेल की छक-छक
कभी-कभी वह घर के बाहर
निकल कर रेल को देखती है
अपनी उंगलियों पर रेल के डिब्बे
गिनती है
यात्रियों को हाथ हिलाकर
विदा करती है
जब प्लेटफ़ार्म खाली हो जाता है
लड़की प्लेटफ़ार्म पर छूटे हुए
टिकटों को इकट्ठा करती है
उन्हें मूल्यवान चीज़ की तरह
सजाकर ताखों पर रखती है
टिकट के साथ लड़की की
इच्छाएँ जुड़ी हुई हैं
देश-देश घूमने की
चांदनी रात में चांदी की तरह
चमकती पटरियाँ
उसके मस्तिष्क में कौंधती हैं
लड़की रेल के बारे में सोचती है
कि रेल अपने लोहे के पहिए
के साथ कितने शहर
धांगती होगी
लड़की घर के बाहर
निकलना चाहती है
वह चाहती है, उसके पाँव
लोहे के पहियों में बदल जाएँ