समय बीतता जाता है, बीता न बहुर कर आता,
आ रे आ, मरघट को नव फूलों का देश बनाता!
क्षेत्र-क्षेत्र को प्लावित करना, है घट-घट को भरना,
आ रे आ, प्रिय, अभी तो तुझे सात समुन्दर तरना!
कोने-कोने, श्याम-सलोने, तू लुक-छुप कर,
गीले बादल,
भूतल को कब वृन्दा-विपिन बनाता है?
बूंद-बूंद देकर सूखे को हरित, मन्जरित
और गुन्जरित करने अब कब आता है?
*******
</poem>