भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वीर / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: रचनाकार:''' रामधारी सिंह "दिनकर"''' ---------------------------- सच् है , विपत्ति जब आती है , <br> क...)
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
सूरमा नहीं विचलित होते ,<br>
 
सूरमा नहीं विचलित होते ,<br>
 
क्षण एक नहीं धीरज खोते ,<br>
 
क्षण एक नहीं धीरज खोते ,<br>
विघ्नों को गले लगते हैं ,<br>
+
विघ्नों को गले लगाते हैं ,<br>
 
कांटों में राह बनाते हैं । <br>
 
कांटों में राह बनाते हैं । <br>
  

16:34, 19 सितम्बर 2007 का अवतरण

रचनाकार: रामधारी सिंह "दिनकर"


सच् है , विपत्ति जब आती है ,
कायर को ही दहलाती है ,
सूरमा नहीं विचलित होते ,
क्षण एक नहीं धीरज खोते ,
विघ्नों को गले लगाते हैं ,
कांटों में राह बनाते हैं ।

मुहँ से न कभी उफ़ कहते हैं ,
संकट का चरण न गहते हैं ,
जो आ पड़ता सब सहते हैं ,
उद्योग - निरत नित रहते हैं ,
शुलों का मूळ नसाते हैं ,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं ।

है कौन विघ्न ऐसा जग में ,
टिक सके आदमी के मग में ?
ख़म ठोंक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पाव उखड़ ,
मानव जब जोर लगाता है ,
पत्थर पानी बन जाता है ।

गुन बड़े एक से एक प्रखर ,
हैं छिपे मानवों के भितर ,
मेंहदी में जैसी लाली हो ,
वर्तिका - बीच उजियाली हो ,
बत्ती जो नहीं जलाता है ,
रोशनी नहीं वह पाता है ।