भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"विदा करने निकली जब माता / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: विदा करना निकली जब माता पग से लिपट रो पड़ी बहुएं, न्याय यही कहलाता ? हमन...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | विदा | + | विदा करने निकली जब माता |
पग से लिपट रो पड़ी बहुएं, न्याय यही कहलाता ? | पग से लिपट रो पड़ी बहुएं, न्याय यही कहलाता ? | ||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
कोई तो समझाता ! | कोई तो समझाता ! | ||
+ | तब वन में था बल स्वामी का | ||
+ | सिर पर था न अयश का टीका | ||
+ | अब तो छूट रहा भगिनी का | ||
+ | इस घर से ही नाता |
00:02, 31 अगस्त 2007 का अवतरण
विदा करने निकली जब माता
पग से लिपट रो पड़ी बहुएं, न्याय यही कहलाता ?
हमने बचपन साथ बिताये
ब्याह हुआ संग संग पति पाये
सीता को ही दुःख दिखलाये
क्यों नित नए विधाता ?
कोमल चित थे जेठ हमारे
बंधु खड़े क्यों चुप्पी धारे
छिपे कहाँ वे ऋषि मुनि सारे
कोई तो समझाता !
तब वन में था बल स्वामी का सिर पर था न अयश का टीका अब तो छूट रहा भगिनी का इस घर से ही नाता