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रवी भात क रचनाएँ इनका जम 05 अैल 1969 को महंदवारा गाँव, सीतामढ़ जनपद बहार के एक मयमवगय परवार म हुआ । इनका मूल नाम रवी कुमार चौबे है । इनक आरंिभक िशा सीतामढ़ म हुई। बाद म इहने बहार ववालय से भूगोल वषय के साथ ववालयी िशा हण क। बचपन म दोत के बीच शेरो-शायर के साथ-साथ तुकबंद करने का शौक था .इंटर क परा के दौरान हद वषय क पूर तैयार नहं थी, उीण होना अिनवाय था . इसिलए मरता या नहं करता .सोचा न अपनी तुकवंद के हुनर को आजमा िलया जाए . फर या था आँख बंद कर ईर को याद कया और राकव दनकर, पत आद कवय क याद आधी-अधूर कवताओं म अपनी तुकवंद िमलाते हुए सारे के उर दे दए . जब परणाम आया तो अय सारे वषय से यादा अंक हद म ा हुए थे . फर या था, हद के ित अनुराग बढ़ता गया और धीरे-धीरे यह अनुराग कव-कम म परवितत होता चला गया .... जीवन और जीवका के बीच तारतय थापत करने के म म इहोने अयापन का काय भी कया, पकारता भी , वमान म ये एक बड़े यावसाियक समूह म अयवसाियक पद पर कायरत ह। आजकल लखनऊ म ह। लखनऊ जो नज़ाकत, नफ़ासत,तहज़ीव और तमून का जीवंत शहर है, अछा लगता है इह इस शहर के आगोश शाम गुज़ारते हुए ग़ज़ल कहना, कवताएँ िलखना, नम गुनगुनाना या फर कसी उदास चेहरे को हँसाना ...... .....विभन ितत प-पकाओं म काशन के साथ-साथ वष-1991 'हमसफ़र'(ग़ज़ल संह), 1995 'समकालीन नेपाली साहय'( संपादत), 1999 'मत रोना रमज़ानी चाचा' (ग़ज़ल संह) कािशत। wअिनयतकालीन 'उवजा' और 'फागुनाहट' का संपादन। हंद मािसक 'संवाद' तथा 'साहयांजिल' का वशेष संपादन। 'वाकरा' टेली डयूमटर फ़म 'नया वहान' के पटकथा लेखक. लगभग दो दज़न सहयोगी संकालन म रचनाएँ संकािलत। वष 2002 म मृित शेष ( काय संह) कयप काशन इलाहाबाद ारा कािशत। इहोने लगभग सभी साहयक वधाओं म लेखन कया है परंतु यंय, कवता और ग़ज़ल लेखन म मुख उपलधयाँ ह। इनक रचनाएँ भारत तथा वदेश से कािशत लगभग सभी मुख हद प-पकाओं म कािशत हो चुक ह तथा इनक कवताएँ चिचत काय संकलन म संकिलत क गई ह। इनके दो उपयास मश : 'ेम हाटवक़ाए' तथा 'समय का पहया चले रे साथी' काशानाधीन ह। इनके मुख लॉग है http://parikalpnaa.blogspot.com/ परकपनाऔर http://anamolshabd.blogspot.com/ शद शद अनमोल संपक ravindra.prabhat@gmail.c
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इनका जन्म 05 अप्रैल 1969 को महींदवारा गाँव, सीतामढ़ी जनपद बिहार के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ । इनका मूल नाम रवीन्द्र कुमार चौबे है । इनकी आरंभिक शिक्षा सीतामढ़ी में हुई। बाद में इन्होंने बिहार विश्वविद्यालय से भूगोल विषय के साथ विश्वविद्यालयी शिक्षा ग्रहण की।
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बचपन में दोस्तों के बीच शेरो-शायरी के साथ-साथ तुकबंदी करने का शौक था .इंटर की परीक्षा के दौरान हिन्दी विषय की पूरी तैयारी नहीं थी, उत्तीर्ण होना अनिवार्य था . इसलिए मरता क्या नहीं करता .सोचा क्यों न अपनी तुकवंदी के हुनर को आजमा लिया जाए . फिर क्या था आँखें बंद कर ईश्वर को याद किया और राष्ट्रकवि दिनकर, पन्त आदि कवियों की याद आधी-अधूरी कविताओं में अपनी तुकवंदी मिलाते हुए सारे प्रश्नों के उत्तर दे दिए . जब परिणाम आया तो अन्य सारे विषयों से ज्यादा अंक हिन्दी में प्राप्त हुए थे . फिर क्या था, हिन्दी के प्रति अनुराग बढ़ता गया और धीरे-धीरे यह अनुराग कवि-कर्म में परिवर्तित होता चला गया ....
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जीवन और जीविका के बीच तारतम्य स्थापित करने के क्रम में इन्होने अध्यापन का कार्य भी किया, पत्रकारिता भी की, वर्त्तमान में ये एक बड़े व्यावसायिक समूह में अव्यवसायिक पद पर कार्यरत हैं। आजकल लखनऊ में हैं। लखनऊ जो नज़ाकत, नफ़ासत,तहज़ीव और तमद्दून का जीवंत शहर है, अच्छा लगता है इन्हें इस शहर के आगोश में शाम गुज़ारते हुए ग़ज़ल कहना, कविताएँ लिखना, नज़्म गुनगुनाना या फिर किसी उदास चेहरे को हँसाना ......
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.....विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन के साथ-साथ वर्ष-1991 में 'हमसफ़र'(ग़ज़ल संग्रह), 1995 में 'समकालीन नेपाली साहित्य'( संपादित), 1999 में 'मत रोना रमज़ानी चाचा' (ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित। अनियतकालीन 'उर्विजा' और 'फागुनाहट' का संपादन। हिंदी मासिक 'संवाद' तथा 'साहित्यांजलि' का विशेष संपादन। 'ड्वाकरा' की टेली डक्यूमेंटरी फ़िल्म 'नया विहान' के पटकथा लेखक. लगभग दो दर्ज़न सहयोगी संकालनों में रचनाएँ संकालित। वर्ष 2002 में स्मृति शेष ( काव्य संग्रह) कथ्यरूप प्रकाशन इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित। इन्होने लगभग सभी साहित्यिक विधाओं में लेखन किया है परंतु व्यंग्य, कविता और ग़ज़ल लेखन में प्रमुख उपलब्धियाँ हैं। इनकी रचनाएँ भारत तथा विदेश से प्रकाशित लगभग सभी प्रमुख हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इनकी कविताएँ चर्चित काव्य संकलनों में संकलित की गई हैं। इनके दो उपन्यास क्रमश : 'प्रेम हाट विक़ाए' तथा 'समय का पहिया चले रे साथी' प्रकाशानाधीन हैं।
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'''इनके प्रमुख ब्लॉग है'''
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'''संपर्क'''
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ravindra.prabhat@gmail.com

15:15, 16 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

इनका जन्म 05 अप्रैल 1969 को महींदवारा गाँव, सीतामढ़ी जनपद बिहार के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ । इनका मूल नाम रवीन्द्र कुमार चौबे है । इनकी आरंभिक शिक्षा सीतामढ़ी में हुई। बाद में इन्होंने बिहार विश्वविद्यालय से भूगोल विषय के साथ विश्वविद्यालयी शिक्षा ग्रहण की।

बचपन में दोस्तों के बीच शेरो-शायरी के साथ-साथ तुकबंदी करने का शौक था .इंटर की परीक्षा के दौरान हिन्दी विषय की पूरी तैयारी नहीं थी, उत्तीर्ण होना अनिवार्य था . इसलिए मरता क्या नहीं करता .सोचा क्यों न अपनी तुकवंदी के हुनर को आजमा लिया जाए . फिर क्या था आँखें बंद कर ईश्वर को याद किया और राष्ट्रकवि दिनकर, पन्त आदि कवियों की याद आधी-अधूरी कविताओं में अपनी तुकवंदी मिलाते हुए सारे प्रश्नों के उत्तर दे दिए . जब परिणाम आया तो अन्य सारे विषयों से ज्यादा अंक हिन्दी में प्राप्त हुए थे . फिर क्या था, हिन्दी के प्रति अनुराग बढ़ता गया और धीरे-धीरे यह अनुराग कवि-कर्म में परिवर्तित होता चला गया ....

जीवन और जीविका के बीच तारतम्य स्थापित करने के क्रम में इन्होने अध्यापन का कार्य भी किया, पत्रकारिता भी की, वर्त्तमान में ये एक बड़े व्यावसायिक समूह में अव्यवसायिक पद पर कार्यरत हैं। आजकल लखनऊ में हैं। लखनऊ जो नज़ाकत, नफ़ासत,तहज़ीव और तमद्दून का जीवंत शहर है, अच्छा लगता है इन्हें इस शहर के आगोश में शाम गुज़ारते हुए ग़ज़ल कहना, कविताएँ लिखना, नज़्म गुनगुनाना या फिर किसी उदास चेहरे को हँसाना ......

.....विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन के साथ-साथ वर्ष-1991 में 'हमसफ़र'(ग़ज़ल संग्रह), 1995 में 'समकालीन नेपाली साहित्य'( संपादित), 1999 में 'मत रोना रमज़ानी चाचा' (ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित। अनियतकालीन 'उर्विजा' और 'फागुनाहट' का संपादन। हिंदी मासिक 'संवाद' तथा 'साहित्यांजलि' का विशेष संपादन। 'ड्वाकरा' की टेली डक्यूमेंटरी फ़िल्म 'नया विहान' के पटकथा लेखक. लगभग दो दर्ज़न सहयोगी संकालनों में रचनाएँ संकालित। वर्ष 2002 में स्मृति शेष ( काव्य संग्रह) कथ्यरूप प्रकाशन इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित। इन्होने लगभग सभी साहित्यिक विधाओं में लेखन किया है परंतु व्यंग्य, कविता और ग़ज़ल लेखन में प्रमुख उपलब्धियाँ हैं। इनकी रचनाएँ भारत तथा विदेश से प्रकाशित लगभग सभी प्रमुख हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इनकी कविताएँ चर्चित काव्य संकलनों में संकलित की गई हैं। इनके दो उपन्यास क्रमश : 'प्रेम न हाट विक़ाए' तथा 'समय का पहिया चले रे साथी' प्रकाशानाधीन हैं।

इनके प्रमुख ब्लॉग है
http://parikalpnaa.blogspot.com/ परिकल्पना और
http://anamolshabd.blogspot.com/ शब्द शब्द अनमोल

संपर्क ravindra.prabhat@gmail.com