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"कहीं पढा था / नवनीत पाण्डे" के अवतरणों में अंतर
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जिस तरह मर जाते हैं | जिस तरह मर जाते हैं |
04:37, 28 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
कहीं पढा था
जिस तरह मर जाते हैं
बीमार-कमज़ोर बच्चे
मर रहे हैं शब्द कविता में
इतना गर्म
और लचीला कर दिया है माहौल
बाज़ारों ने
कि अखबारी समाचार
फंतासी किस्सागोई
होने लगी है कविता
बच्चे ने लिखे
सुलेख की अभ्यास पुस्तिका में
लिखावट सुधारने के लिए कुछ षब्द
गर्व से घोशित कर दिया गया
बेटे ने लिखी है कविता।