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"कोंपले फिर फूट आईं शाख़ पर कहना उसे / फ़रहत शहज़ाद" के अवतरणों में अंतर

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('कोंपलें फिर फूट आँई शाख पर कहना उसे वो न समझा है न समझ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
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कोंपलें फिर फूट आँई शाख पर कहना उसे
 
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वो न समझा है न समझेगा मगर कहना उसे
 
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वक़्त का तूफ़ान हर इक शय बहा के ले गया
 
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कितनी तनहा हो गयी है रहगुज़र कहना उसे
 
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जा रहा है छोड़ कर तनहा मुझे जिसके लिए
 
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चैन न दे पायेगा वो सीमज़र कहना उसे
 
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रिस रहा हो खून दिल से लैब मगर हँसते रहे
 
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कर गया बर्बाद मुझको ये हुनर कहना उसे
 
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जिसने ज़ख्मों से मेरा 'शहज़ाद' सीना भर दिया
 
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मुस्कुरा कर आज क्या है चारागर कहना उसे
 
मुस्कुरा कर आज क्या है चारागर कहना उसे

00:30, 17 अक्टूबर 2011 का अवतरण

कोंपलें फिर फूट आँई शाख पर कहना उसे

वो न समझा है न समझेगा मगर कहना उसे

वक़्त का तूफ़ान हर इक शय बहा के ले गया

कितनी तनहा हो गयी है रहगुज़र कहना उसे

जा रहा है छोड़ कर तनहा मुझे जिसके लिए

चैन न दे पायेगा वो सीमज़र कहना उसे

रिस रहा हो खून दिल से लैब मगर हँसते रहे

कर गया बर्बाद मुझको ये हुनर कहना उसे

जिसने ज़ख्मों से मेरा 'शहज़ाद' सीना भर दिया

मुस्कुरा कर आज क्या है चारागर कहना उसे