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"आग / विश्वनाथप्रसाद तिवारी" के अवतरणों में अंतर
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कहीं बाहर नहीं होती वह | कहीं बाहर नहीं होती वह |
12:11, 25 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण
कहीं बाहर नहीं होती वह
हर चीज़ में होती है आग
आत्मा की तरह अदृश्य और जाग्रत
बिरही की तरह बेचैन और आतुर
किसी भी चीज़ को उठा लो कहीं से
ले जाओ उसे आग के पास
स्पर्श होते ही
वह बन जाएगी आग।