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"हर ख़ुशी ग़म में बदलती है कहो कैसे हँसूं /वीरेन्द्र खरे अकेला" के अवतरणों में अंतर

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शान से महलों में पलती है कहो कैसे हँसूं
 
शान से महलों में पलती है कहो कैसे हँसूं
  
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ऐ ‘अकेला’ मंज़िलों को दूर जाता देखकर
 
ज़िन्दगानी हाथ मलती है कहो कैसे हँसूं
 
ज़िन्दगानी हाथ मलती है कहो कैसे हँसूं
ऐ ‘अकेला’ मंज़िलों को दूर जाता देखकर
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16:10, 12 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण


हर ख़ुशी ग़म में बदलती है कहो कैसे हँसूं
दिल में मेरे आग जलती है कहो कैसे हँसूं

वो न मिल पाएंगे है मालूम पर उनके लिए
रोज़ ये तबियत मचलती है कहो कैसे हँसूं

धीर खोते दिल को समझाते हुए जाता है दिन
रोते-रोते रात ढलती है कहो कैसे हँसूं

मैं ज़रा भी ख़ुश रहूँ तो मुँह बनाता है समय
जान लोगों की निकलती है कहो कैसे हँसूं

जिसकी ख़ातिर मैं ज़मानेभर से झगड़ा था वही
ग़ैर के घर में टहलती है कहो कैसे हँसूं

करके ईमानों को बेघर बेईमानी आजकल
शान से महलों में पलती है कहो कैसे हँसूं

ऐ ‘अकेला’ मंज़िलों को दूर जाता देखकर
ज़िन्दगानी हाथ मलती है कहो कैसे हँसूं